शृङ्गेरी श्री शारदा पीठ के 36वें पीठाधीश्वर परमपूज्य जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनन्तश्री-विभूषित भारती तीर्थ महास्वामी जी वैश्विक स्तर पर अनेक शास्त्रों के सम्मानित विद्वान हैं। इस मनोहर चित्रमय पुस्तक में — उनके बाल्यावस्था से ही कठोर शास्त्रबद्ध जीवन यापन, कुशाग्रबुद्धि, विनम्रता, विरक्ति और ज्ञान के लिए निरन्तर उत्कट अभिलाषा का साक्ष्य सिद्ध करना, स्वयं को परमपूज्य जगद्गुरु श्री अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी जी के चरणों में समर्पित करना और उनके द्वारा संन्यास प्राप्ति स्वरूप कृपा पाना एवं अपने गुरुजी के चरणों में तर्क तथा वेदान्त शास्त्रों का निष्ठापूर्वक अध्ययन करना — इत्यादि विवृत हैं। उनकी भारत में व्यापक रूप से अनेक बार की गयी विजय यात्राएँ, उनकी संस्कृत, कन्नड़, तेलगु, तमिल व हिन्दी भाषाओं में अप्रतिम वाक्पटुता, उनकी संस्कृत, वेद एवं शास्त्रों के संरक्षण-संवर्धन के प्रति विशिष्ट सकारात्मक प्रतिबद्धता, उनकी अनेक प्रकार की दूरदर्शी सामाजिक उपलब्धियाँ, उनका अनगिनत शिष्यों पर नाना प्रकार का दयापूर्ण अनुग्रह प्रदान — इन सब के कारण भी गुरुजी सुप्रसिद्ध हैं। सरलता से चिह्नित उनकी शिक्षाएँ, आम लोगों को सनातन धर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रभावी रूप से सदैव प्रेरित करती हैं।