इस ‘दुःखों से परमानन्द तक’ प्रकाशन में, परमपूज्य जगद्गुरु शङ्कराचार्य अनन्तश्री-विभूषित अभिनव विद्यातीर्थ महास्वामी जी (गुरुजी) की अमूल्य शिक्षाओं को — शिष्यों के प्रश्नों पर गुरुजी के निश्चायक उत्तर, उनके द्वारा सुनाई गई कथाएँ, उनके शास्त्रों का विशदीकरण तथा उनके स्वयं लिखित सुतीक्ष्ण निबन्ध — इन चार विभागों में प्रस्तुत किया गया है। गुरुजी की व्याख्याओं में स्पष्टता और सुसङ्गति व्यक्त हैं । सचमुच, उनकी शिक्षाएँ संसार के दुःखों को मिटाने का एवं जन्म-मृत्यु के चक्र से छुटकारा पाने का उपाय दर्शाते हुए, मोक्ष के रूप में शाश्वत आनन्द प्राप्त करने में किसी को भी सक्षम बनाती हैं और सहारा देती हैं। परमपूज्य गुरुजी — जो शृङ्गेरी श्री शारदा पीठ के 35वें पीठाधीश्वर जगद्गुरु शङ्कराचार्य के रूप में विराजमान रहे — तर्क व वेदान्त के प्रकाण्ड पण्डित तथा श्रेष्ठ जीवन्मुक्त (जीवित रहते हुए संसार बन्धन से मुक्त) थे। उन्होंने शास्त्रों में घोषित प्रबुद्ध ऋषियों के विवरण का अनुपम जीवन्त प्रमाण होते हुए, अपने सम्पर्क में आए सैकड़ों सहस्र लोगों के हृदयों को छुआ और अनगिनत प्रकार से उनका उत्थान किया।